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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४४ अध्यात्मगीता. नामथी जीव चेतन प्रबुद्ध । क्षेत्रथी असंख्य प्रदेशी विशुद्ध । द्रव्ये स्वगुण पर्याय पिंड। नित्य एकत्व सहजे अखंड ॥ ७॥ अर्थः-नामथी जीवने चेतन कहिये. चेतनालक्षणो जीवः चेतना ते ज्ञानदर्शन चारित्र तप उपयोग वीर्य लक्षण इत्यादि तथा बीजो अर्थ, नाम निक्षेपे जीव अथवा चेतन अथवा प्रबुद्ध कहिये, ए जीवनां त्रण नाम कहीये, क्षेत्रथी जीवनो स्वक्षेत्ररूप असंख्य प्रदेशात्मक अने विशुद्ध ते अत्यंत निर्मल छे, द्रव्यथी निज द्रव्य पोताना गुण ज्ञानादि स्वपर्याय तेहनाज पिंड समुदायरूप छे ते द्रव्य कहीये, अने नित्य ते सदैव शाश्वतो छे, केणे कर्यो नथी अने एकत्व ते निश्चय नयमते जीव सदाकाळ पोताना स्वरूपमा एकत्वपणे छे, सहज अखंड ते खंडाय नहि, अछेदी अभेदी छे. ॥ ७ ॥ ऋजुसुये विकल्प परिणामे जीव स्वभाव । वर्तमान परिणितमय व्यक्ते ग्राहक भाव ॥ शब्दनये निज सत्ता जोतो इहतो धर्म। शुद्ध अरूपो चेतन अणग्रहतो नव कर्म ॥९॥ अर्थः--ऋजुसुत्रनयने मते जीव विकल्परूप पारिणामिक भाव ग्रहे छे, एटले वर्तमान समये जीवने जेवो उपयोग होय तेवो प्रगट कही बोलावे, अजमूत्र नयमतवाळो यथाकश्चित् For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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