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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशम श्री शीतलनाथजिन स्तवनं. ६४३ निपजाववानी आत्मशक्ति ढंकाणी हती, ते व्यक्त केतां प्रगटपणे उल्लसी केतां उल्लास पामी हवे निमित्त कारण मले उपादान कारण प्रगटे, आत्मा तत्वरुचि, ताविक, तत्त्वालंबी थाय, तो संपूर्ण अविनाशी सिद्धता निपजतां शी वार छे ? एटले पुष्टकारणें नियमा कार्य निपजे, तेमाटे देवचंद्र स्तुति कर्त्ता, अथवा सर्वदेवमांहे चंद्रमा समान ते जिनराज, श्रीवीतराग, ते सर्वजीवना आधार छे, एटले जिनमुद्राने आलंबनें अनंत जीव सिद्धि वरचा, तेथी अरिहंतालंबने सिद्धता निपजे, ए नियामक छे, वास्ते अरिहंतस्मरण, वंदन, नमन, स्तवन, ध्यान करो. हे भव्य जीवो! तमने एहीज आधार छे ॥ ७ ॥ इति श्री सुविधिजिनस्त० ॥ ॥ अथ दशम श्रीशीतलनाथजिन स्तवनं ॥ || आदर जीव क्षमागुण आदर || ए देशी ॥ शीतल जिनपति प्रभुता प्रभुनी, मुझथी कहीय न जाय जी ॥ अनंतता निर्मलता पूर्णता, ज्ञान विना न जणाय जी || शी० ॥ १ ॥ अर्थ:-- हवे दशमा परमेश्वर श्रीशितलनाथजीनी स्तनना करे छे. श्री शीतलनाथनी अनंत अविनश्वर आत्मिक प्रभुता ते प्रत्यक्ष तो केवलीने गम्य छे, अने सम्य दृष्टि रुचिने तो श्रद्धामां छे, ते कहे छे. हे शीतल जिनपति! तुमने १०१ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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