SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४२ दे० चो० बा० पछी जीवद्रव्यपणाना साधमें केतां सरखापणे जे सिद्ध थया, ते पण जीव अने हुं पण जीव माटें सत्तायें सरिखा छैयें. गुणपर्याय स्वभावें तुल्य छैयें. तो जेवी संपदा श्री सुविधिनाथ परमेश्वरने प्रगट थई छे, तेटलीज संपदा माहरी सत्तामां पण छे, तेथी हुं पण ते परमेश्वर जेटली संपदानो धणी छं, एम ओलख्या पछी ते संपदा उपर बहुमान आवे, तेथी ते संपदानी रुचि प्रगटे, जे एहवी संपदा माहारे केवारें नीपजशे ? अने जेनी रुचि होय, तेहनो उद्यम थाय, तेवारें वीर्यगुणनुं स्फुरण ते पण रुचिने अनुयायी छे, अने जे दिशें वीर्य स्फुरे, तेहमांज रमण थाय. एटले तेहनुंज नीपजवानुं आचरण थाय, एटले प्रभु दीठे प्रभुनी प्रभुता भासे, ते प्रभुता पोतामां जाणे पछी ते प्रगट करवानी रुचि उपजे, तेथी रुचिनुं वीर्य तथा चारित्र जे रमण, ते पण ते दिशें सधे, तेवारें ते सिद्धता प्रगटे, तेथी जिनमुद्रानो योग ते बधुं साधन छे, ए मार्ग को ॥ ६ ॥ इति षष्ठ गाथार्थः ॥ क्षायोपशमिक गुण सर्व, थया तुज गुणरसी हो लालाथ० सत्ता साधन शक्ति, व्यक्तता उल्लसी हो लाल ॥ व्य०॥ हवे संपूरण सिद्धि, तणी शीवार छे हो लाल ॥ त० ॥ देवचंद्र जिनराज, जगत्र आधार छे हो लाल !" ज० ॥ ७ ॥ अर्थः-पछी क्षायोपशमिगुण चेतना वीर्य, दानादि सर्व, जेवारें तुझ केतां तारा गुणना रसी थया, तेवारें ते निष्पन्नगुण रसी चेतना थवायी अनंतगुणरूप सत्ता तेहनुं साधन १०० For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy