________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अष्टम श्री चंद्रप्रभजिन स्तवनं.
पारिणामिक भाव छ, जेपणे एर्नु मूल लक्षण छे, स्वव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल, स्वभावरूप तेपणुं रहे, परमानंद अविनाशी अवस्था वरे ॥ १० ॥ इति ॥
परमगुणी सेवन तन्मयता, निश्चय ध्याने ध्या। जो ॥ शुद्धातम अनुभव आस्वादि, देवचंद्र पद पावे जी ॥ श्री० ॥ ११ ॥
अर्थः--ए रीतें परम केतां उत्कृष्ट गुणी जे श्री अरिहंत शुद्धदेव तेहनी सेवा अति दुर्लभ छे, ते पामीने तेहमांहे तन्मय थईने जे जीव निश्चय केतां निर्धारे, अथवा निश्चय केतां पोताने स्वरूपध्याने एकत्वता रूपे जे ध्यावे, ते जीव, शुद्ध निष्कलंक जे आत्मा चिदानंद घन, तेहनो जे अनुभव केतां यथार्थ ज्ञान वेद्य संवेद्य पद सहित तेहने आस्वादिने देव जे निग्रंथ अथवा भुवनपति प्रमुख चार निकायना, तेहमां चंद्रमा समान भाव उद्योत समता शीतलतानां कारण जे अरिहंत ते रूप पदस्थानक ते प्रत्ये पामे, एटले अहो भव्य जीवो ! जो तमें पोताना आत्मसुखना इच्छक थया छो, अने शुझानंदने विलसो, एवी अभिलाषा तमने छे, तो श्रीचंद्रप्रभस्वामी शुद्धदेव, अशरणना शरण, जगदाधार, जगत्जीवना परोपकारी, मोह तिमिरनो ध्वंस करवाने भावसूर्य जेहवा, कर्मरोगना परम वैद्य, महा माहण, महा गोप, महानिर्यामक, महासार्थवाह, सम्यक्हृष्टि जीवना जीवनप्राण, देशविरतिने तो महामंत्रनी परें जपवा योग्य, साधु निग्रंथ जेहनी आज्ञायें चाले छे, उपाध्या80
८७
For Private And Personal Use Only