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अव्यात्मगीता:
गये दान पोताना ज्ञानादि अनंतगुणने विषे दीये छे ते दानलब्धि, १ लाभांतरायक्षयगये पोताना स्वरूपनो लाभ थयो ते लाभलब्धि २ भोगांतराय कर्म क्षय थाय त्यारे पोताना ज्ञानादि अनंतगुणना पर्याय तेहने समये समये उपभोग करे छे ते उपभोगलब्धि ४ वीर्यातराय कर्म क्षय गये पोताना अनंताज्ञानादिकने विषे अनंतो बीर्य फोरवे छे ते वीर्यांतरायलब्धि ५ तथा जिहां आत्मा ज्ञान दर्शन रूपगुण बेमयिज कहे छे, तिहांतो वीर्यादिक गुण सिद्धमां नयी कहेता अने जिहां अनंतगुणी व्याख्या करे तिहां कहे छे एटले असंख्यात प्रदेशी, अरूपी, अखंड ज्ञानदर्शन गुणमयी उपयोग लक्षण कर्त्ता, भोक्ता सहज परिणामे जीवद्रव्य जाणवो. जीवभाव द्रव्य प्राणे करीने सदा जीवे ते जीव, चेते-जाणे तेमाटे चेतन कहिये, तथा नवा नवा पर्यायने पमाडे माटे आत्मा कहे छे इत्यादिक अनेक नाम छे. ॥ ४॥
संग्रहे एक आया खाण्यो । नैगमे अंशथी जे प्रमाण्यो । दुविध व्यवहार नय वस्तु वीहचे । अशुद्ध वलि शुद्ध भासन प्रपंचे ॥ ५ ॥
अर्थः- साते नये करी जीवनो स्वरूप ओलखावे छे. संग्रहे एक आत्मा वखाण्यो, संग्रहनयना मतवालो सत्तानो ग्रहण करे छे एटले ए सर्वे जीव चेतना समूदाय जोतेथके एक सरीखा छे, ए संग्रहनयनोमत. नैगमनयना मतवाला एक अंश ग्रीने सर्व वस्तुनो प्रमाण करे एटले जीवना आठ रुचक
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