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अध्यात्मगीता.
जाण्यो जे आचारांग सूत्रे कथं छे “जे एगंजाणइसे सर्वजाणइ " ते आत्म के० आत्मस्वरूपमेंज रमे एहवा मुनि जगत्मांहि प्रसिद्ध छे, तेणे अध्यात्मगीतानो उपदेश कर्यो छे पण करता कहे के हुं नथी करतो इतिभावः ॥ ३ ॥
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द्रव्य सर्वना भावनो जाणग पासग एह । ज्ञाता कर्त्ता भोक्ता रमता परिणति गेह || ग्राहक रक्षक व्यापक धारक धर्म समूह | दान लाभ बल भोग उपभोगतणो जे व्यूह || ४ |
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अर्थ:-- द्रव्य सर्वना के० धर्मास्तिकायादिक पट द्रव्यना गुणपर्याय तथा औदयिकादिक भावना भिन्न २ करी जाण्या छे, तथा दीठा छे एहवो आत्मा छे, ज्ञाता के० स्वपरनो स्वरूप जाणे छे जाने करीने कर्त्ता के शुभाशुभ विभाव दशानो कर्ता नथी अने पोताना ज्ञानादि अनंतगुणरूप लक्ष्मी तेहनो कर्त्ता छे अने पोताना ज्ञानादि अनंतगुणरूप जे पर्याय तेहनो भोक्ता छे, रमतापरिके ० स्वपरिणतिरूप जे घर तेहने विषे सदाकाल रमे ज्ञाता तथा कर्ता तथा भोक्ता तथा रमता इत्यादिक परिणतिना गेह के० घर छे, ग्राहक के० ज्ञानादि गुणधर्म समूह तेहने ग्रहे ते भणी ग्राहक ते धर्मनो राखणहार तथा स्वधर्मने विषे व्यापी रह्यो छे, स्वपरिणतिने घरे ते धारक एटले ग्राहक, रक्षक, व्यापक, धारक, स्वधर्मनो समूहनो छे, एहिज आत्म दान लाभ के० दानादिक पांच लब्धिना समूह प्रगट्या छे, दानलब्धि ते दानांतराय कर्मक्षय
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