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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दे० चो० बा. जाणणा नत्थि इति आवश्यकनियुक्तिवचनात्॥ माटे गुणने विषे पर्याय छे, पण गुणने विषे अन्य गुण नथी, श्रीनयचक्रमां कहे छे, जे गुणने विषे अन्यगुण पणुं होय तो गुण ते द्रव्यपणुं पामे, तेमाटे गुण ते निर्गुण छे, एटले सुपास प्रभुरूप द्रव्य छे, ते ज्ञानादिक अनंत गुणनो कंद छे एटले मूल छे. तिहां ज्ञान जे आत्मानो विशेषावबोधरूप सकल विशेष धर्म गुणपर्याय, तेहनी अनंती परिणति तेहनो ज्ञायक नित्यानित्यादिक अनंत धर्मनु ज्ञायकत्व, वेत्तृत्व, अगुरुलघुत्व, अनंतपर्यायनो पिंड, ते ज्ञानगुण ते लोकालोक सकल प्रत्यक्षरूप सर्वप्रदेशनिरावरणरूप तेहने आनंदें करी पावनो कहेतां पवित्र छ, पूर्ण छे. वली कषाय तथा पुद्गल फल आशारूप दोषरहित एवं स्वरूप स्थिरतारूप जे चारित्र, अनंतपर्यायात्मक, अकषायता, अवेदता, असंगता, परमक्षमा, परममार्दव, परमनिर्लोभतारूप, स्वरूप एकत्वरूप पास प्रभु ! ताहारे विषे छे, एटले चारित्रानंदमयी छो, ते माटे पवित्र निर्मल छो ॥ १ ॥ इति प्रथम गाथार्थः ॥ संरक्षण विण नाथ छो, द्रव्य विना धनवंत हो ॥ जि० ॥ कर्ता पद किरिया विना, संत अजेय अनंत हो ॥ जि. ॥ श्री० ॥२॥ अर्थः--वली हे प्रभु ! तमें संरक्षण विना नाथ कहेतां धणी छो, एटले कोई अन्य जीवनी तथा अन्यद्रव्यनी रखवाली करता नथी, केम जे संरक्षण पणुं करवू, ए तमारो For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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