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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचम श्रीसुमतिजिन स्तवनं. ५९३ ............ ....... .... एथी, कोइ केतां हरेक द्रव्य, ते प्रभुता केतां मोटाइपणुं, न पामे केतां पामे नहीं, तो केम पामे ? ते कहे छे. करे केतां पोताना धर्मने कर्तीपणे करे, एटले बीजा अजीवादि पांच द्रव्य ते सर्व उत्पाद व्यय ध्रुवपणे परिणमे छे, पण ते कर्ता नथी, अने जीवद्रव्य ते कर्ता छे, ते शा माटे ? जे बीजा सर्व द्रव्यना धर्म प्रतिप्रदेशे छे, अने ते प्रदेश प्रदेशे प्रवत्त छे, पण एक प्रदेशने बीजा प्रदेशनुं सहाय एम एकहुँ प्रवर्तन नथी, अने जीवद्रव्यने प्रदेश प्रदेशे धर्म अनंता छे, अने ते ते प्रदेशे रह्या प्रवृत्ति करे छे, पण ते सर्व प्रदेशे समुदाय मलीने एकठी प्रवृत्ति छे, माटे जीवद्रव्य कर्ता छे, तेथी स्वस्वधर्मने करे छे, ए कैपिणुं ते ईश्वरता छे, तथा अजीवद्रव्यमध्ये पण अनंता गुण अनंता पर्याय छे, पण ते द्रव्य पोताना गुणने जाणता नथी, अने आत्मा ज्ञानादिक अनंता आत्मगुण तथा अनंता परद्रव्य तेथी अनंतगुणा परगुण, ते सर्वने जाणे छे, माटे जाणपणुं ते असाधारण धर्म छे, तथा स्वचारित्रगुणे करी आत्मा पोताना गुणनेविषे रमे छे, अने अजीवद्रव्य ते स्वधर्मे रमी शकता नथी, तथा आत्मा स्वभाव धर्मने भोगवे छे, तेथी स्वरूपानुभवी छे, माटे जे कर्ता होय ते भोक्ता होय, पण जे कर्ता नथी, ते भोक्ता नथी, तेथी अनुभवधर्म, ते आत्माने विषेज छे, माटे जे कर्ता ते ज्ञाता जे चारित्री, जे भोक्ता, ते प्रभु केतां तेने परमेश्वर जाणवो, एटले दर्शनांतरी परमेश्वरने अकर्ता कहे छे ते पण मिथ्या छे, अथवा परभावना कर्ता कहे ते पण मिथ्या, केम जे परमेश्वर निःकर्मा ते स्वभावना का स्वभावना भोक्ता छे. हवे एम केहेतां संसारी तथा सिद्ध सर्व परमेश्वरपणुं पामे ? ते उपर 75 For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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