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द्रव्यप्रकाश
प्रीति मन आनिकै गरंथ कीनो गुनपरजाय धर जामे द्रव्यज्ञान है ॥ १५८ ॥
॥दोहा॥ अध्यातमसेली सरस, जे मांनत सौ जैन; ते वाचेंगें ग्रंथ यह, ज्ञानामुत रस लैन. ॥ १५९ ॥ गुन लच्छन पहिचानिकें, हेयवस्तु करि हेय; चिदानंद चितमय अगम, शुद्ध ब्रह्म आदेय. ॥१६॥ परमात्म नय सुद्ध धरि, शिवमारग एहीज; यह मोहमैं नव भमें, यहै ग्रंथको बीज. ॥१६१॥
॥ संवत् कथन ॥
। दोहा।। विक्रम संवतमान यह, भय लेझ्याके भेद; सुद्ध संयम अनुमोदिकै, करि आश्रवको छेद (१७६७)॥१६२॥ ता दिन या पोथी रची, वव्यों अधिक संतोष सुभ वासर पूरन थई, प्रथम जिनेसर मोष. ॥१६३।।
॥ अथ ग्रंश भहिमा ॥
॥ मवैया इकतीसा ॥ गुनको निधान हैकि मानो निरवान है कि साची जिनवान यामे अधिक उदार है, मानी मद भंजन है मिथ्या मतिभंजन है ज्ञानदृष्टि अंजन शिलाका सुखकारहे; रामको रमनहै कि दुष्टकोदमन हैकि परकोवमन है अपार पारावार है, संतको सवाद हैकि शुद्धि स्यादवाद यामे औरको विषादनाहि ज्ञानि उरहार है. ।। १६४ ।।
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