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द्रव्यप्रकाश.
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ज्ञान वान सब कहे हैं, जिनवर धर्मपरि जाकी परतीति थिर और मत वात चितमाहि नाहि गहै है: जिनदत्तसुरीवर कही जो क्रियाप्रवर खरतर खरतर सुद्ध रीति वहै है; पुण्यके प्रधान ध्यान सागर सुमतिहीके साघुरंग साधुरंग राजसारलहे है ॥ १५४ ॥ ॥ दोहा ॥
सब पाठक सिरसेहरो, राजसार गुनवान;
विचरे आरीजदेशमै भवि जन छत्र समान. ।। १५५ ।। ॥ सवैया इकतीसा ॥
ताके शीश है विनीत परमीतसौ वितीत सावरीत नीत धारी गुन अभिराम है, आत्मज्ञान धर्मधर वाचक सिधंतवर अतिउपसंत चित्त ज्ञान धर्मनाम है; ताके शिष्य राजहंस राजहंस मानसर सुप्रधान उद्यमादि गुन गन धाम है, अंतेवासी देवचंद कीनो ए गरंथ वर अपनो चेतन राम खेलिवैकुं ठाम है ॥ १५६ ॥
॥ दोहा ॥
कीनो यहां सहाय अति, दुर्गदास शुभचित्त; समजावन निज मित्तको, कीनौ ग्रंथ पवित्त. ॥१५७॥
॥ अथ शास्त्रके श्रोता तिनके नाम ॥
॥ सवैया इकतीसा ||
आतम सभाव मिठु मल्लको पहारी दिठो भेरुदास उदास मुलचंद जान हैं, ज्ञानलेख राजवर पारस स्वभाव घर सोमजीव
परि जाकी सरधान है; ज्ञानादि त्रिगुनमंत अध्यातम ध्यानमंत मुलतान थांन वासी श्रावक सुजान है, ताकी धर्म
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