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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्यप्रकाश. ५४३ ज्ञान वान सब कहे हैं, जिनवर धर्मपरि जाकी परतीति थिर और मत वात चितमाहि नाहि गहै है: जिनदत्तसुरीवर कही जो क्रियाप्रवर खरतर खरतर सुद्ध रीति वहै है; पुण्यके प्रधान ध्यान सागर सुमतिहीके साघुरंग साधुरंग राजसारलहे है ॥ १५४ ॥ ॥ दोहा ॥ सब पाठक सिरसेहरो, राजसार गुनवान; विचरे आरीजदेशमै भवि जन छत्र समान. ।। १५५ ।। ॥ सवैया इकतीसा ॥ ताके शीश है विनीत परमीतसौ वितीत सावरीत नीत धारी गुन अभिराम है, आत्मज्ञान धर्मधर वाचक सिधंतवर अतिउपसंत चित्त ज्ञान धर्मनाम है; ताके शिष्य राजहंस राजहंस मानसर सुप्रधान उद्यमादि गुन गन धाम है, अंतेवासी देवचंद कीनो ए गरंथ वर अपनो चेतन राम खेलिवैकुं ठाम है ॥ १५६ ॥ ॥ दोहा ॥ कीनो यहां सहाय अति, दुर्गदास शुभचित्त; समजावन निज मित्तको, कीनौ ग्रंथ पवित्त. ॥१५७॥ ॥ अथ शास्त्रके श्रोता तिनके नाम ॥ ॥ सवैया इकतीसा || आतम सभाव मिठु मल्लको पहारी दिठो भेरुदास उदास मुलचंद जान हैं, ज्ञानलेख राजवर पारस स्वभाव घर सोमजीव परि जाकी सरधान है; ज्ञानादि त्रिगुनमंत अध्यातम ध्यानमंत मुलतान थांन वासी श्रावक सुजान है, ताकी धर्म ६३ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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