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द्रव्यप्रकाश.
॥ चेतनता समताप्रीति कथन ॥
॥दोहा ।। चेतन चेतनता सहित, परम धरम गुनथान; पावे वर निरवान पद, समता प्रीति निधान. ॥१५०॥ ॥ अथ कवि निज लघुताइ कथन ।।
॥ सवैया तेवीसा ॥ मे जिनआगमते जो उलंपिके जो कछु वात विरुद्ध वखानी, सो तुम सोधिके भाखहु पंडित पंडित जाहीकी मोह नीसांनी; गहो गुनमी सुनिके तुम सज्जन शास्त्रको अर्थसु तत्त्व पीछानी, बोधिसु बोधक ग्रंथ गहो बुधडारिके संपति एह विरानी. १५१
॥ अथ पूर्व कविसरके गुन ॥
॥सवैया इकतीसा ॥ पाठक सुपाठहीके निवारन आठहीके हंसराज राजपति नामे हंसराजहे, ताके कीनेहेसलस शत अडवीस ज्युत ज्ञानहीके जान अरुदंसनके राज है। तत्त्वके पीछान जान ताहिको निधान मान विमल अमल सब ग्रंथ शिर ताज है, आपा पर भेद कर परब्रह्मभाव भर सुफ सरधान धर नरताके काज है. ॥ १५२ ॥
॥ दोहा ॥ हिंदु धर्मवीकानयर, कीनीसुख चौमास; तिहां ए निज ज्ञानमे, कीनो ग्रंथ अभ्यास. ॥१५३।। ॥ अथ कवीसरके गुरुके नाम कथन ॥
॥सवैया इकतीसा ।। वर्तमान काल थीत आगम सकल वीत जगमे प्रधान
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