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द्रव्यप्रकाशः
॥ दोहा ॥
स्यादवादयुत द्रव्य षद, जहां वखाने ठीक; नामे द्रव्य प्रकासयौ, ज्ञानग्रंथ तहकीक ॥। १६५ ॥
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॥ पुनः ग्रंथमहिमा ॥ ॥ सयैया इकतीसा ||
परस प्रतीत नाहि पुण्य पाप भीति नांहि रागदोष रिति नांहि आतम विलास है, सावकको सिद्धि है कि बुज्जवै कु बुद्धि है की राजवैको रिद्धिज्ञान भानको विकास है; सजन सुहाय दुज चंद ज्युं चढाव है कि उपसमभाव या अधिक उल्लास है, अन्यमतसौं अफेद वंदतदें देवचंद ऐसे जैन आगमें द्रव्य प्रकाश है ॥ ६६ ॥ ॥ दोहा ॥
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ज्ञान ध्यान सुखधान यह, यह मुगतिको पंथ जीवद्वार नभय है ( नव यह है) पुग्न भयो गरंथ. ॥१६७॥
॥ इति श्री देवचंद्रमुनि विरचिते द्रव्यप्रकाश (व्रज) भाषाग्रंथे तृतीयं जीवद्वारं समाप्तम् ॥
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