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द्रव्यप्रकाश.
॥ आत्माअबंध कथन ॥
॥ दोहा ॥ जे थीर आतम ध्यानमे, आतम ज्ञानविलीन जे निजगुन थिरता लहै, गहे न कर्म नवीन. ॥१४०॥ नव नव भव तरु छेदको, यह शीत शास्त्र उदार, ध्यान पवित्र मुनिसको, रहै ध्येय गुन धार. ॥१४१॥ दुरगम पद पथ अगम ए, लहि ऐसो निज योग; वृथा बाह्य करनी करे, दंडे तीनो योग. ।। १४२ ॥
॥ करनी सरूप कथन ॥
॥दोहा॥ करनी निज गुनक तरनी, धरनी दोष अथांहिः दुखमै या भवसमुद्रकी, तरनी वरनी नाही. ॥१४३।।
॥ सवैया तेवीसा ॥ या करनी वरनी परनितमे मोह महीपतिकी तरनी है, या करनी धरनी तलकी फीरनी करनी परनी सरनी है; या करनी हरनी गुनकी अरनीटर संवरकी टरनी है। या करनी करे निच सभावको कोह महादवकी अरनी है॥१४४
॥दोहा ।। करनी करता करमकी, इनमे चेतन दीन; जब चेतन समता मिले, तबे लहे सुखपीन. ॥१४५।।
॥ परमात्मास्तुति ॥
___ सवैया इकतीसा ।। परम निधान हैकि निखान थान हैकि असमान ज्ञानवान
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