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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ઉરૂદ द्रव्यप्रकाश. -------- --nare r oonrn .- - .. - .. . ॥ पुनः आत्मगुन कथन ॥ ॥छप्पय ॥ परम सुखी श्रीथान नाहि को दुजो याते, निरभय पद ए मुख्य और सब जनकी बाते, यहे संतरस जान मोष मारगभी एही, कर्मवृक्षके छेदय है फरसीज अवेही, इह ज्ञानवान भगवान वर ज्ञानादिक गुन वय वहै, यह भजो रमो जानो इहे सर्वमां इह दुरगम इहे. ॥ १३२ ।। ॥ अथ चेतनगुन कथन ॥ ॥सवैया तेवीसा ॥ ज्ञान अज्ञानके हेतु भए तुम आपतही भमते भवमाही, कारक बुद्धि भई परसो तरसो चित्तमें सुख संपती पाही; आपको जानीके ध्यानमे आनिके सुद्ध मुनि निखानको जाही, आपको त्रायक आपही चेतन चेतनता गुनज्ञानको चाही.॥१३३ भोग संजोगजु भोगके गेह ते नेह तेयाभव तै विरचे जे, भावही आतम आतमते वर आतमज्ञान कला अरचे जे; मोहकी जेलको छेलके ते नर या भवके सुख नां परचेते, सम्यक ध्यानहियो निज आनिके कर्मको भर्म सही खरचेते.१३४ रोग विना जन तिक्त कसाय ज्युं ओषधस्युं चित्त प्रीति उतारे, आतुरता विनुं चातुर ते नर देहकी सार करे दिनसारे; दर्शन मोह विना चिन मुरति चेतन चेतनसुख संभारे, भोग संयोगको जोगकरे नही साधु सदा चित्त ज्ञानको धारे.१३५ ॥ पुनः चेतनगुन कथन ॥ ॥सवैया तेवीसा ॥ अंतर तत्त्व विलोकी कीया जीम भानुं उदै सब वस्तु प्रकाशे, रहे जगमै जग रीति धरे नहीं आप गुने करी उज्जल भासै; For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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