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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AAAAAAAAAAAAAAAAAAA द्रव्यप्रकाश. -.. -...---- ॥ अज्ञानविलास कथन ॥ ॥ सवैया तेवीसा ॥ मे बहु वेर अज्ञानके फेरमें औरकीओरति हेरनधायो, वध्यो भवलोह विमोहकी निंदमे ज्ञायक दृष्टिको तेज दबायो; आतम बुद्धि भइ परपै डरपै अरपै निज मित कहायो, चंद कहे गुणचंद लहै विनु काल अनंत भमंत गमायो.॥१२९॥ ॥ज्ञानजागृतदशा ॥ ॥ सवैया इकतीसा ।। याहीके पीछान्यो अतिअतिसे चेतनसत्ति जागे जामे तिनलोक अलोक समाने है, याहिके सरूप जान्यो जाने खट भाव सब एते खट भावके पिछानकु कहाने है; अतिहीनि सतिमति शास्त्रके विचित्तताइ जाके जानपने विनुं श्रमरूप ठानेहे, जैसे कन वितुं तुस खंडनहे निकारन तैसे ज्ञान वितुं सब काज निफलाने है. ॥ १३० ॥ ॥ पुनः ॥ जाके अनुभवसेती भागे भवभीत निज परतीत सो अनित नित २ जागी है, जैसे भानके उद्योत सब जग ज्योति होत भासे घट पट भाव अंधकार भागे है। तैसे जाके तेज आगे राग द्वेष ग्रंथी भागे लागे न करम नव शिव जाके आगे है, परम आनंदकंद देवचंद सुखकर धरमी व्रती मुनीस जाके ध्यान लागे है. ॥ दोहा॥ आतम आतमध्यान गत, न भजे और उपाय; जैसे पावक काठ विन, सहने उपशम थाय. ॥१३१॥ 68 For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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