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द्रव्यप्रकाश. -.. -...---- ॥ अज्ञानविलास कथन ॥
॥ सवैया तेवीसा ॥ मे बहु वेर अज्ञानके फेरमें औरकीओरति हेरनधायो, वध्यो भवलोह विमोहकी निंदमे ज्ञायक दृष्टिको तेज दबायो; आतम बुद्धि भइ परपै डरपै अरपै निज मित कहायो, चंद कहे गुणचंद लहै विनु काल अनंत भमंत गमायो.॥१२९॥
॥ज्ञानजागृतदशा ॥
॥ सवैया इकतीसा ।। याहीके पीछान्यो अतिअतिसे चेतनसत्ति जागे जामे तिनलोक अलोक समाने है, याहिके सरूप जान्यो जाने खट भाव सब एते खट भावके पिछानकु कहाने है; अतिहीनि सतिमति शास्त्रके विचित्तताइ जाके जानपने विनुं श्रमरूप ठानेहे, जैसे कन वितुं तुस खंडनहे निकारन तैसे ज्ञान वितुं सब काज निफलाने है. ॥ १३० ॥
॥ पुनः ॥ जाके अनुभवसेती भागे भवभीत निज परतीत सो अनित नित २ जागी है, जैसे भानके उद्योत सब जग ज्योति होत भासे घट पट भाव अंधकार भागे है। तैसे जाके तेज आगे राग द्वेष ग्रंथी भागे लागे न करम नव शिव जाके आगे है, परम आनंदकंद देवचंद सुखकर धरमी व्रती मुनीस जाके ध्यान लागे है.
॥ दोहा॥ आतम आतमध्यान गत, न भजे और उपाय; जैसे पावक काठ विन, सहने उपशम थाय. ॥१३१॥
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