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द्रव्यप्रकाश.
॥ आतममहिमा कथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ गहन अतीव जीव विशदहें अनहद पर असपृष्ट स्पष्ट निरंतर सिष्ट है, प्रकटित आत्मभूत विभूति अनंत सांत परकी विभूतिसेति प्रीति जाकी नष्ट हे; जाहिको सवाद स्यादवादके प्रमोद होत अगणित महाभोग संपदा प्रविष्ट हे, बुझिके निधान निरवान थान पामिवेको सावधान होत नित जैसो ब्रह्म इष्ट हे ॥ १२२ ॥
॥ पुनः आत्ममहिमा कथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ।। महावृत तप ताप यम नियमादि जाप प्राणायाम योगके अभ्यासा प्रबल हे, क्षुधा तृषा शीत क्षीति सोवनादी परिसह अनुलोम प्रतिलोषमाहि नाहि चल हे; इत्यादिक क्रिया गुन जाकै जानपने दिनु नाथहीन सैना जैसें अति निरबल हैं, जाके जाने देखे सब जानो देख्यो जगद्रव्य ऐसौ परब्रह्म मेरो ध्यानसु सफल है ॥ १२३ ॥
॥चिदानंद उपादेय कथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ सतत अनंत तेजपुंजसो विराजमान दलित अज्ञान मल अचल अमल है, सोई तत्त्व गहो भैया रहे भवकीच वीच तोभी यातै मिन्न जैसे पंकमे कमल है; इंद्र चंद्र चक्रवर्ति पद सुखको सवाद जाके सुधा स्वाद आगे मानु क्षार जल है, ऐसे परमातमामें सोहु सोऽहं ध्यानगम अगम परब्रह्म ध्यानमे सकल है ।। १२४ ॥
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