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द्रव्यप्रकाश.
है, अजोगी अभोगी योगी अवेदि अछेदवेदी अलेसी अभेदी यैसो देवचंदनाथ हे. ॥ ११४ ।।
॥ आत्मशुद्धता कथन ॥
॥ सवैया इकतोसा ।। पीछे कर्मके प्रपंच रंच न अरुचि संच वंचक सभाव पंच सुद्धरूप भयो हैं, परभात्र सागरमें भ्रमजके वेगवेग बुडो चिरकालको सभाव सोउ तस्योहे; दीप्त करके प्रकरता करी दलित तम अष्ट करम मल दलि बट गुन वरयो हैं, ऐसो जो परम जोति सदा काल जयवंत तमतम खंडवैकुं रविसम धरयो हैं.
॥ आत्मगुण वरणन ॥
॥ सवैया इकतीसा ।। करतार भोगतार एसे जे विकार भार अपहार करि वर थिरभाव लयो हे, गुन घन काती च्यार ताको बंध तोरिडारि अमंद आनंद कंद मोदवृंद वरयो है। शुफ सांत है अनंत अहत्तविचित्त वृत्ति परज्योति सत्य नित्य सत्यरूप रह्यो हैं, सब ज्ञेयमे ज्ञेय करि हेय हरि शुद्ध बुझ ब्रह्म मेरो सदाकाल कह्यो हैं. ।। ११६ ॥
॥ आतमरूप ।।
॥ सवैया तेवीसा ।। मुक्तिको माग सुवाग विरागको दर्शन ज्ञान चरित्र त्रयी है, तन्मय आतम आतमवेदिके मोह उछेदन रीति लयी है। आतमज्ञान कलाकलिवै जसुनिर्मल संवर बुद्धि भयी है, सोनरको कछ कर्म करे सोतो पूर्वकर्म उदीकमयी हैं.॥११७॥
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