________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
द्रव्यप्रकाश.
मनमांहि संदेहतो रह्यो है, मूढ़ जैसे भोगरीत समकिती भोगवे हे तोभी तुम चैनमे अबंध रीत वहै है; जैसे कोउ मत्तनर मद्दपे आरति नाहि रति साही वाही कहै गंध नाही गहे है, तेसे ज्ञाता द्रव्य भोगवे पै राग वितुं अमिना कर्मको तो बंध नाहि लहे है.।। १०७ ॥
॥ जिनमत कथन ॥
॥दोहा॥ सर्व भाव निज रूप गत, यह जिनवरकी वानि; ताते कर्ता कर्मको, वृथा किलेस वखानि. ॥१०॥
॥ मूढमति कथन ॥
॥ चोपाई ॥ सर्वभाव निजभाव निहारि, परकारजको कोय न धारे, ताते मूह अहंधी राच्यो, सदा रहे परगुण माच्यो. ॥१०९॥
___॥ हेयोपादेय कथन ॥
॥ सवैया तेवीसा ॥ करमके भरम परयो यह चेतन एतन मन प्रीति वधारे, ज्ञानमयी कर तुति करि जब देहकी प्रीति अनीति उतारे, राग निवारिके द्वेषकु ढारिके निर्मम भाव सदा उर धारे, ज्ञान निधान स्वरूपको जानके आत्मरति मुनि आत्मनिहारे.११०
॥ आत्मकर्मक्षयहेतु कथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ ऐसें भेदज्ञान धरि आपा पर भेद करि परिहर परभाव
For Private And Personal Use Only