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द्रव्यप्रकाश.
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॥ परमात्ममहिमा कथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ नवतच्चे के विकल्प तीनुयोगके संकल्प तामै रहे नित्य बैं निरागी असपृष्टहे, ज्ञानावरणादिक अड कर्ममाही रह्यो तौभी चेतनाको मूप निज रूपही मै निष्टहै; सुमतीसु थाह साही कुमतिको अंस नाही निज वित्त रत परसौ न लष्ट पष्ट है, परम अखंड ज्योति नित्य संत हे अमित देवचंद तत्त्वपर जिनजीको इष्ट है ॥ १०१ ॥
॥ आत्मा अनेकरूप कथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ नित्य हेकि अनित्य हैकि एकहै अनेक हैकि सदसदभाववान कै तेन उपायो है, मूषमसुं मूषम है थूलसु अतीवथूल अरूपी अगंध जिन ग्रंथनमै गायो है, लोकालोक तीन काल उतपात धुव नास जाकी ज्ञानजोतिमांहि जगत समायौ है, ऐसो परमातम आतम महातम धारी परम आनंदकंद देवचंद पायो हे ॥१०२॥
॥ दोहा ।। पूर्वकृत निज कर्मफल, गृहै भोगवै जीव; तौभी ज्ञान विराग बल, बंधन विना सदीव. ॥१०३॥
॥ शिष्य प्रश्न ॥
॥ सवैया इकतीसा ॥ काम भोग भोगतेभी अबंधक को ज्ञाता एतो वात हम मनमांहि न सुहानीहे, श्रावकमुनिस एते क्रिया. करे सब
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