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द्रव्यप्रकाश,
|| आत्माएक क्रिया कथन || ॥ सवैया इकतीसा ॥
एक एक कारजके करतार हे अनेक एक एक करताके कारीज अनेक है, ऐसे कहे जीव करतार होय परहीको पर करतार चिदानंदको भी एकहे, एक करतार एक कारजको तहकी स्यादवाद मतमांहि इदै थिर टेकहे ॥ ९७ ॥ ॥ दोहा ॥ चेतन दुरगतिमे परे, पुरस्कृत संबंध
ज्युं विष्टामृत कूपमें, परे मत्त जन अंध ।। ९८ ।। || पूर्वज्ञानबल वर्णन || || संवैया इकतीसा |
आमाको ज्ञान ध्यान मुक्तिको है निदान आत्मज्ञान विनुं शिव कबहु न जानीये, दान दया तप जप उपसम यम दम ज्ञान विनुं एति क्रिया तुछ फल मानिये; याते दोनुं व्याप्ति जानि आतमा एकंत आनि मन तन वा निरोधी सिद्धसोधी आनिये, यहै निरखान थान यहे हे केवलज्ञान आनकर कुतिवानि दोषमे वखानीये ॥ ९९ ॥
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॥ अथ आत्ममहिमा | ॥ सवैया इकतीसा ॥
धरम अधरम द्रव्य एक असंख्यातदेश उपचार काल नभ अनंत प्रदेश है, जीवहे अनंत ताते पुद्गलहे अनंत द्रव्य द्रव्यमे अनंत गुणको प्रवेश है; गुण गुणमे अनंत परजाय परिणति ज्ञाता सब भावको परम गेय देश है, अनादि अनंत निर द्वंद्व महानंदकंद महोदयी एसो मेरो आत्मा हमेस है ॥ १०० ॥
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