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द्रव्यप्रकाश.
॥ आतमशिक्षा कथन ॥
। सवैया तेवीया । करम उपाधि अनादिके बंधन प्रीति लगी तुम्ह चापरसौ, रागरूं रोसको रंग लग्यो जीउ नीलको रंगज्युं कापरसो; पारकी संपत्ति आपनी थापि के थापन ढाचनको तरसौ, भयो तुम ब्रह्मकरमके कारक मूरख रास लगे परसौ. ॥ ९३ ॥
॥ बंधविधि कथन ॥
॥दोहा॥ बंधे अपनी लालसौ, कुलीया वरतीरपंच; त्यु असुद्ध निज भावसो, बंधे आतम खंच. ॥ ९४ ।। ॥मिथ्यामति गुरुउत्तर कथन ।
॥ सवैया इकतीसा ॥ ईश्वरकी रत इन आतमा कहत नित ज्ञान रित मत रत मदमत वारेहे, ईश्वरकी इछा करि नर फिरे बहुपरि नरग सरग तिरजग योनि धारे है; एते परि जैन कहे आतमा अक्रिय संत अरूपी दिगादिवत् अलिपत सारे है, कुगति सुगति याते आनि कोउ नाहि देत निजकृत कर्मफल भोगते बिचारेहै ॥१५॥
॥ अज्ञानमहिमा कथन ॥
॥दोहा॥ मै अज्ञान वीरजसो, त्रिविध कर्मकी आथ; करता भोगता ताहिको, सात धातु मल साथ. ॥९६॥
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