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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्यप्रकाश मौन रहे ग्रहे जोग जुगतिसहि बंधबंधनहे खरसे; आसन मंडि आशा सब छंडि पवनके साधकहै हरसे, इति करतुति करे विनु ज्ञान जे मूढमिथ्यातमति नरसे. ॥ ८९ ॥ ॥ मिथ्यामति कथन ।। ॥ दोहा ॥ मिथ्या मति अपराधीनी, परगुन चाहे आप; ज्यु ज्युं परसंपति वढे, त्युं त्युं होय संताप. ।। ९० ॥ ॥ परवस्तु हेय आत्मा उपादेय ॥ ॥ सवैया इकतीसा ॥ वचन जुगति चित्त तनदुति मनथिति हित अनहित रति अरतिकी रति है, अंतेउर पुरचर असन वसन वनवस्तु गन अनजहा नयनकी गतिहे; पुण्य पाप आदि देय गेय चेय हेय सब संयोग वियोग थिति जामे नित्य प्रतिहै, अक्षर त्रिगुन साथ देवचंद गुननाथ उपादेयरूप एक आतमा अमितहै।।९१ ॥ पुण्य पाप हेय कथन ॥ ॥ सबैया इकतीसा ॥ पुण्य पाप पुद्गल मलहे अखिल दल खलगुलढल मान व्यक्ति भेद धरेहे, याते पुन्य पाप रोध कीने निज बोध सोधि व्याधकी समाधि राग रोष (दो ) जरेहे; इंधन अभाव जेसे अगनि उद्योत नांहि बीजके अभाव जेसे वृक्षवृद्धि टरेहे, तेसे भाव कर्म नास ज्ञानचेतना प्रकाश परम अनंतपद देवचंद वरेहे. ॥ ९२ ।। For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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