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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्यप्रकाश ५२५ wwwmummmmm कुगतिसं डरेहै, करतामे कारजको कीनोमें कारज एसो अहंबुद्धि मातो विपरीति धरेहै; आपको न पहिचाने ठाने भ्रमभाव मन तन धन निजगुन कर्मको करेहे, कपटको आसन अज्ञानको विकासन हे ऐसो मिथ्यामति भवसागरमे परेहै ॥८६॥ ॥ पुनः मिथ्यामति कथन ॥ ॥ सवैया इकतीसा ॥ आपको न जाने चित परहिको माने वित ठाने भ्रमभाव रत करम कहरमे, चित्तमाही धरे वांक सुखहीकी कांक्ष राखे डोलतनिसांकरां कूमत्तज्यूं सहरमे; हानि थान मलखानि जाने न गिलानि आनि राचे तामे अतिविष वेदज्यु जहरमे, उलट अटत नित लोटन कबूतरज्युं सुलटत नाहिकब मिथ्याकी लहरमे ॥ ८७॥ ॥ पुनः मिथ्यादृष्टि कथन ॥ ॥ सवैया इकतीसा ॥ करगत जीवनज्यो जीवन घटत नीत बिन छीन छीन तन मन भी बढतु हे, कालकी न वात जाने करे बहुकाल तात तात मात भ्रात संग सातकुं वदतु हे धरम मरम विनु भरमके घर परयो ज्ञान विन क्रियारत पुन्यको रटतुहे, इतनेभी मुरख पुरुष निज रूख नाहि सुख मुखभयो नित दुःखमे अटतुहे ।। ८८ ॥ ॥ पुन: मिय्थामति कथन ॥ ॥ सवैया तेचीसा ॥ ग्रंथ पढे न बढे कछ ज्ञान, अज्ञानमे लीनज्युं पाथरसे, For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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