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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्यप्रकाश. AntrvAnnnn...Aruar...monarma ॥ शिष्य प्रश्न ॥ ॥ दोहा ।। एक द्रव्यमे तीन गुण, कैसे रहे एकत्र; यह इम मन संदेह है, कहो गुरु परमपवित्र. ॥८॥ ॥अथ गुरु उत्तर कथन ॥ ॥ सवैया इकतीसा ।। जैसे पीत स्निग्धगुरु तीन गुन भेद विनुं निरंतर आदि लेके कंचनमे रहो है, दहन पचन फुनि तपन ए तिन गुण अगनिमे एकसमें जिनवर कहे हे; शीतल प्रतल वलि निरमल जलविचि तीनो गुण एकसमे स्वभावसे वहे हे, तैसे जीव द्रव्यमांहि ज्ञानादि त्रिगुन रहे निहचेसु भाबसे अभेद रूप गहेहे ॥ ७९ ॥ ॥ज्ञानगुन भेदाभेद कथन ॥ ॥ चोपाई ॥ जो विचारीये नय विवहारा, तो ज्ञानादि जीवसु न्यारा; राहूसीस जैसे यह लीजे, हेअ भेदपे भेद कहीजे. ॥८॥ ॥भेदज्ञान महिमा कथन ॥ ॥सवैया इकतीसा ॥ कामभोग लालची दे सब जीव वशी कीने भीने मोहरसमे निरंतर विकल है, ताकी छाक दूरहरि आप पर भेद करि ऐसो भेद ज्ञानगुन अदोष अमल है; धारावाही रीत लीये ताको घरेसो सुबुद्धि करमके मोरनको कारन सबलहै, अकल सकल विनुं सकल जगत परि रहे सिद्धटैक जैसे तोयमे कमलहे ॥८१ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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