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द्रव्यप्रकाश.
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॥ शिष्य प्रश्न ॥
॥ दोहा ।। एक द्रव्यमे तीन गुण, कैसे रहे एकत्र; यह इम मन संदेह है, कहो गुरु परमपवित्र. ॥८॥
॥अथ गुरु उत्तर कथन ॥
॥ सवैया इकतीसा ।। जैसे पीत स्निग्धगुरु तीन गुन भेद विनुं निरंतर आदि लेके कंचनमे रहो है, दहन पचन फुनि तपन ए तिन गुण अगनिमे एकसमें जिनवर कहे हे; शीतल प्रतल वलि निरमल जलविचि तीनो गुण एकसमे स्वभावसे वहे हे, तैसे जीव द्रव्यमांहि ज्ञानादि त्रिगुन रहे निहचेसु भाबसे अभेद रूप गहेहे ॥ ७९ ॥
॥ज्ञानगुन भेदाभेद कथन ॥
॥ चोपाई ॥ जो विचारीये नय विवहारा, तो ज्ञानादि जीवसु न्यारा; राहूसीस जैसे यह लीजे, हेअ भेदपे भेद कहीजे. ॥८॥
॥भेदज्ञान महिमा कथन ॥
॥सवैया इकतीसा ॥ कामभोग लालची दे सब जीव वशी कीने भीने मोहरसमे निरंतर विकल है, ताकी छाक दूरहरि आप पर भेद करि ऐसो भेद ज्ञानगुन अदोष अमल है; धारावाही रीत लीये ताको घरेसो सुबुद्धि करमके मोरनको कारन सबलहै, अकल सकल विनुं सकल जगत परि रहे सिद्धटैक जैसे तोयमे कमलहे ॥८१ ॥
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