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आगमसार.
कर्मरोग औषधसमी, ज्ञान सुधारस वृष्टि ॥ शिव सुखामृत सरोवरी, जय २ सम्यक् दृष्टि ॥२॥ एहिज सद्गुरु शीख छे, एहिज शिवपुर माग ॥ लेजो निज ज्ञानादि गुण, करजो परगुण त्याग ॥३॥ ज्ञान वृक्ष सेवो भविक, चारित्र समकीत मूल ।। अमर अगम पद फल लहो, जिनवर पदवी फूल ॥ ४॥ संवत सत्तर छिहत्तरे, मनशुद्ध फागुण मास ॥ मोटे कोट मरोटमे, वसतां सुख चोमास ॥५॥ सुविहित खरतर गच्छ सुथिर, युगवर जिन चंद सूर ॥ पुण्य प्रधान प्रधान गुण, पाठक गुणे पंडूर ॥६॥ तास शिष्य पाठक प्रवर, सुमतिसार गुणवंत ॥ सकल शास्त्र ज्ञायक गुणी, साधुरंग जसवंत ॥७॥ तास शिष्य पाठक विबुध, जिनमत परमत जाण ॥ भविक कमल प्रतिबोधवा, राजसागर गुरुभाण ॥८॥ ज्ञानधर्म पाठक प्रवर, शमदम गुणे अगाह ॥ राजहंस गुरु गुरु शक्ति, सहुजग करे सराह ॥९॥ तास शिष्य आगमरुचि, जैनधर्मको दास ॥ देवचंद आनंदमें, कीनो ग्रंथ प्रकाश ॥१०॥ आगमसारोद्धार एह, प्राकृत संस्कृत रूप ॥ ग्रंथ कियो देवचंदमुनि, ज्ञानामृत रसकूप ॥११॥ करयो इहां सदाय अति, दुर्गदास शुभचित्त ॥ समजावन निज मित्रकुं, कीनो ग्रंथ पवित्त ॥१२॥ धर्ममित्र जिन धर्म रतन, भविजन समकितवंत ॥ शुद्ध अमरपद ओलखण, ग्रंथ कियो गुणवंत ॥१३॥
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