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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. अर्थः - भव्य प्राणी एम चिंतवे जे ए शरीर छीजजाओ, मिजजाओ, क्षय थइ जाओ, विणसीजाओ, ए म्हारुं शरीर पौगलिक छे परवस्तु छे ते एक दिवसे मूकवुं छे माटे रे प्राणी ! तुं आपणा आत्माने निर्मलपणे घ्यावतो संसारथी तरीने कांठो पामीश. ए हिज अप्पा सो परमप्पा, कम्मविसेसोइ जायोजप्पा || इयमे देवज्जाजसो परमप्पा, बहु तुझे अप्पो अप्पा ॥ १० ॥ यः परात्मा परं ज्योतिः, परमः परमेष्ठिनाम् ॥ आदित्यवर्णं तमसः, परस्तादामनंति यम् ॥ १ ॥ ब्रह्म छे पण कर्मने वश पड्यो शरीरमां जे जीव छे ते देव छे, आपणो आत्मा घ्यावो, तरण तारण त्माज छे एम श्री हेमाचार्ये वीतरागस्तोत्रमां को छे. अर्थ :- अहो भव्यजीव ! एहीज आपणो आत्मा छे ते शुद्ध जन्ममरण करे छे पण ए परमात्मा छे, माटे तुमे जिहाज ए आपणो आ ६५ सर्वे येनोदमूल्यंत, समूलाः क्लेशपादपाः । इत्यादि ॥ For Private And Personal Use Only अर्थ - परमात्मा छे परमज्योति छे, पंच परमेष्ठीयी पण अधिक पूज्य छे. केमके पंचपरमेष्ठीतो मोक्षमार्गना देखाडनारा छे पण मोक्षमां जवावालो तो आपणो जीव छे, अज्ञाननो मि 9
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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