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आगमसार.
___अर्थः-अहो भव्य प्राणी ! जो तमने जिनमतनी चाहना छे अने जो तुमे जिनमतने इच्छो छो मोक्षने चाहो छो तो निश्चयनय अने व्यवहारनय छांडशो नहि एटले बेहु नय मानजो. व्यवहार नय चालजो अने निश्चय नय सदहजो जो तुमे व्यवहार नय उथापशो तो जिन शासनना तीर्थनो उच्छेद था. जेणे व्यवहारनय न मान्यो तेणे गुरु वंदना, जिनभक्ति, तप, पञ्चख्खाण, सर्व न मान्या एम जेणे आचार उथाप्यो तेणे निमित्त कारण उथाप्यो अने निमित्त कारण विना एकलो उपादान कारण ते सिद्ध न थाय माटे निमित्त कारण रूप व्यवहार नय जरूर मानवो अने जो एकलो व्यवहारनय मानियें तो निश्चय नय ओलख्या विना तत्त्व- स्वरूप जाण्यु जाय नही माटे तत्वमार्ग अने मोक्षमार्ग ते निश्चय नय विना पामियें नहीं अने तत्वज्ञान विना मोक्ष नथी एटले निश्चय विना व्यवहार निःफल छे अने निश्चय सहित व्यवहार ते प्रमाण छे, तेनो दृष्टान्त-जेम सोनाना
आभूषणमां उपधातु अथवा किणजो मिल्यो होय तेपण उंचा सोनाने भावें लेइ राखियें छैयें अने जो ते किणजो तथा सोनुं जू, करिये तो सहु कोइ सोनाने ले पण कोइ किणजो जे कुधातु ते लीये नही तेम निश्चयनय सोना समान छे माटे निश्चयनय सहित सर्व भला छे अने निश्चयनय विना सर्व अलेखे छे माटे आगममां निश्चय व्यवहार रूप मोक्षमार्ग छे ते कयो. वली शरीर ऊपर मोह करे नही ते विषे.
च्छिज्जो मिज्जो जाय खओ, जोइ हमे हु सरीरं ॥ अप्पा भावे निम्मलो, जं पावं भवतीरं ॥ ९॥
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