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आगमसार
जीवादिसद्दहणं सम्मत्तं, एस अहिगमो नाणं ॥ तथ्येव सया रमणं, चरणं एसो हु मुख्ख पहो ॥६॥
अर्थ:-जीवादिक छ द्रव्य जेवा छे तेवा सदहवा ते समकित अने छ द्रव्य जेवा छे तेहवा गुणपर्याय सहित जाणे ते ज्ञान जाणवू. ते छ द्रव्य जाणीने अजीवने छांडे अने अने जीवना स्वगुणमां स्थिर थइने रमे ते चारित्र कहीये. ए ज्ञान दर्शन चारित्र शुद्धरत्नत्रयी ते मोक्षनो मार्ग छे माटे ए ज्ञान दर्शन चारित्रनो घणो यत्न करवो ए रत्नत्रयी पामीने प्रमाद करवो नहीं तिहां निश्चय व्यवहारनी गाथा.
निच्छयमग्गो मुख्खो, ववहारो पुणणकारणो वृत्तो ।। पढमो संवररूवो,
आसपहेउ तओ बीओ ॥ ७॥ अर्थ:-निश्चय नयनो मार्ग ज्ञान सत्तारूप ते मोक्ष- कारण छे एटले मोक्ष छे अने व्यवहार क्रिया नय ते पुण्य कारण कलो. पहेलो निश्चय नय संवर छे अने निश्चय संवर निश्चय नयते एकान छे जूदा नथी. बीजो व्यवहार नय ते आस्रव नपा कर्म लेमानों हेतु छे एटले शुभ पुण्य कर्मनो आस्रव थाय छे अने अनुभं व्यवहारे अशुभ कर्मनो आस्रव थाय छे. कोइ पूछे जे व्यवहारलय आत्रप, कारण छे तो अभेः व्यवहार नहीं आदरसुं एक निश्चय मार्ग आदरमुं तेने उत्तर कहे छे.
जइ जिपमयं पवजह, ता मा ववहारनिच्छए मुयह ।। एकेण विण तिथ्थं, छिज्जइ अनेणओं तच्च ॥८॥
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