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आसमसार.
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अर्थः-नय तथा भंगे करी तथा प्रमाणे करी जे पोताना आत्माने जाणे ओलखे स्यावाद आठ पक्षे जाणे अने एम स्याद्वादपणे मोक्षनी कर्माऽवस्थाने प्रण जाणे परवस्तुने हेय जाणे जीवगुण उपादेय जाणे तेने समकीति जाणावो. हवे जीवस्वरूप ध्यान करवाने गाथा कहे छे.
अहमिको खलु सुनो, निम्ममओ नाणदंसणसमग्गो।। तम्मि दिडिओ तच्चिसो,
सब्वे ए ए खयं नेमि ॥४॥ अर्थः-ज्ञानी जीव एहq ध्यान करे के हुं एक छु पर पुद्गलथी न्यारो छु निश्चय नयेकरी शुद्ध छु,अज्ञानमलथी न्यारो छु, निर्मल छु, ममताथी रहित छु, ज्ञानदर्शनथी सरयो छु, हुं मारा ज्ञान स्वभाव सहित छु, हुं मारा गुणमा रह्यो छु, चेतनागुण ते महारी सत्ता छे, हुं मारा आत्म स्वरूपने ध्यावतो सर्व कर्म क्षय करुं छु.
निरंजणं निकल अयल, देवअणाइ अणइ अणंतं ॥ चेयणलरूखण 'सिद्धसम,
परमम्पा सिवसंतं ॥५॥ अर्थः-कर्म अंजनथी रहित निरंजन छु, कलंक रहित छु अयल केहतां पोताना स्वरूपथी किवारे चलायमान था नहीं परमदेव छं. जेनी आदि नथी तथा जेनो अंतनिधी चेतना लक्षण छुसिद्ध समान , संतसत्ता मयी छ. .
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