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आगमसार.
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टावनार छे सर्व कर्म क्लेशनो खपावनार छे एवो आत्माध्यावो एहिज परम श्रेयनुं कारण छ, शुद्ध छे. परम निर्मल छे. एहवो आत्मा उपादेय जाणी सदहे अने जेबो पोताथी निखाह थाय तेवो त्याग वैरागमा प्रवर्त एटले धन ते परवस्तु जाणी सुपात्रने दान आपे अने इन्द्रियना विकार ते कर्मबंधना कारण जाणी परिहरे, शील पाले, जे आहार छे ते पौद्गलिक परवस्तु छे, शरीर पुष्टीनुं कारण छे, अने शरीर पुष्ट कीधाथी इंद्रियोना विषयनो पोष थाय माटे ते पर स्वभाव छे, अज्ञान संसार- कारण छे माटे आहारनो त्याग करवो तेने तप कहियें. तथा पूजा ते जे श्री अरिहंत देवें मोक्षमार्ग उपदेश्यो ते आपणे जाण्यो माटे आपणा उपकारी छे ते उपकारीनी बहुमान सहित भक्ति करि ये. माटे श्री अरिहंत देवाघिदेवनी पूजा करवी. एम दान शील, तप, पूजा, सर्व जीव अजीवनुं स्वरूप ओलख्या विना जे करवू ते पुण्यरूप इंद्रिय सुखनुं कारण छे अने जे जीवने उपादेय करी वांछा विना करणी करे छे ते निर्जरानुं कारण छे. एम दया पण श्रीभगवती सूत्रमा सातावेदनी कर्मनुं कारण छे एटले सम्यक ज्ञानीने सर्व करणी ते निर्जरारूप छे अने ज्ञान विना सर्व करणी बंधन कारण छ, माटे ज्ञाननो घणो अभ्यास करजो ए भगवतें सीखामण दीधी छे.
तथा ज्ञान- कारण श्रुतज्ञान छे तेनो घणो भाव राखजो. श्रीठाणांगमां तथा उत्तराध्ययनमां तथा भगवतीमां १ वाचना, २ पृच्छना, ३ परावर्तना, ४ अनुप्रेक्षा, ५ धर्मकथा. ए सझ्झाय भणवा गुणवानुं फल मोक्ष कह्यो छे. सझाय करवायी ज्ञानावरणी कर्म खपावे केमके वाचनाथी तीर्थधर्म प्रवर्ते, महानि
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