________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
८२६
विचार रत्नसार.
ळवा उपर रुचिवंत, ५ चपळता रहित एकाग्र चित्ते सांभलीने धारे, ६ जेवा सांभळ्या तेवा प्रगट अक्षर कही देखाडे तेवो स्मरण शक्तिवंत, ७ प्रश्ननो जाण, ८ विस्तारित शास्त्रार्थ रहस्य समजे, ९ धर्म कार्ये आळसु न होय, १० धर्म सांभळतां निद्रारहित होय, ११ तात्त्विक बुद्धिवंत होय, १२ दातार होय, १३ धर्म सांभळनारा उपर प्रेम होय तथा तेनी पछवाडे तेना गुण प्रशंसे, १४ निंदा, विकथा, वाद, विवाद,
कदाग्रह, ममतादि रहित विनयी सुशील होय. १३८ प्र०-पुराणो केटलां छे ते जणावो. उ०-पुराण अढार छे तेना नाम. १ ब्रह्मपुराण, २ पद्म
पुराण, ३ विष्णुपुराण, ४ शिवपुराण, ५ भागवतपुराण, ६ नारदपुराण, ७ माकैडपुराण, ८ अग्निपुराण ९ भारतपुराण, १० ब्रह्मावर्तपुराण, ११ लिङ्गपुराण, १२ वराहपुराण, १३ स्कंधपुराण, १४ वामनपुराण १५ कर्मपुराण, १६ मत्स्यपुराण, १७ गरुडपुराण,
१८ ब्रह्मांडपुराण. ए पुराणना नाम जाणवा. १३९ प्र०-पुद्गल परमाणुमां वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, शब्दादि गुणो
छे; तेमां शब्दगुण ते क्याथी आव्यो, शक्ति होय तेनी व्यक्ति संभवे छे पण अहिं शक्तिरूपेज परमाणुमां शब्दगुण देखातो नथी, छतां शब्दवडेज काने सांभळीए छीये ते जीवनो गुण छे के
पुद्गलनो ? उ०-परमाणुमां बे स्पर्श छे, कर्मवर्गणामां चार स्पर्श छ
७४
For Private And Personal Use Only