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विचार रत्नसार.
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१३७ प्र०-वक्ता तथा श्रोताना चौद चौद गुण कया कया
छे ते कहो. उ०-वक्ताना चौद गुणो:-१ आगमोक्त सोळबोलना
जाण, २ शास्त्रार्थ विस्तारवंत, ३ वाणीमां मीठाश, ४ प्रास्ताविक अवसर ओळखे, ५ सत्य बोले, ६ सांभळनारना संदेह छेदे, ७ बहु शास्त्रवेत्ता गीतार्थ उपयोगी होय, ८ अर्थ विस्तारी संवरी जाणे, ९ व्याकरण रहित कठिनभाषा के अपशब्द न बोले, १० वाणीए सभाने रीझावे, ११ वाणी सांभळीने श्रोता रसस्वाद पामे, १२ प्रश्नार्थवंत, १३ अहंकार रहित, १४ संतोषादिधर्मवंत. श्रोताना चौद गुणो :
१ भक्तिवंत, २ प्रियभाषी, ३ निरभिमानी, ४ सांभअने रात्रे उपाश्रयमां दीपकना प्रकाशमां पुस्तको वांचे छे. शरीरपर प्रकाश पडे छे ते अदाहकविलसा पुद्गलरूप छे एम माने छे. अनन्त परमाणुओनो स्कंध बने छे तेनी अवश्य छाया होय छे. अग्निकायनां पुद्गलोनी, मणिनी छायानी पेठे छाया पडे छे. दीवानी चारे तरफ प्रकाश मय विस्नसा पुद्गलो छे, तेन अग्निना छाया-प्रतिबिंब पुद्गलो छ माटे छाया प्रतिबिंब पुद्गलो छे ते विस्त्रसारूप होई अचित्त छे. अन्य सचित्त मनुष्य वगेरे छकायना प्रतिबिंब छाया पुद्गलोनी पेठे-ए प्रमाणे आगमोक्तयुक्तियो अनेक जणावे छे. श्रीमद् देवचन्द्रजी बहुश्रुत गीतार्थ द्रव्यानुयोगी हता. तेमना गुरुआनो परंपरापण ए मान्यतावाळी होवी जोईए. तपागच्छमां पण केटलाक मुनियोनी तेवी मान्यता तथा प्रवृत्ति संभळाय छे. बीजा पक्षवाळाओ दीवाना पुद्गलोनी उजेही माने छे. तेओ ग्रन्थना पाठनी साक्षी आपे छे. ( तत्त्वं केवलिगम्यम् ). शो. बु. सू.
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