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विचार रत्नसार
१३६ प्र० - दीवा प्रमुख ज्योतिमय पदार्थोंना प्रकाश पडे छे, ते दीवामध्ये रहेला अनिकाय जीवना पर्याय छे ?
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उ०- दीवा मध्ये जे अन्निना जीव छे, ते मांहेज परिमी रह्या छे, पण दाढकरूप पर्याय छे ते बाहेर नीळे नहि, तथा दीवाना प्रकाशरूप पुद्दल जे बाहेर दीसे छे, तेतो विस्रसा पुद्गलनी पर्याय छाया छे. तथा दीवानी बाहेर जे प्रकाशरूप पुद्गल दीसे छे ते, तथा प्रकाशरूप पुद्गलना निमित्ते, अपर विस्रसा पुद्गल श्रेणिबद्ध जमाव थाय छे ते अचित्त दीसे छे. पण ते अग्निकाय जीवना पर्याय नहि, तेना (अग्निना) गुण पर्याय तो दाहक रूपे छे, ते ज्यां व्यापे त्यां बाळी भस्म करे; माटे बाहिर पडतो प्रकाश विस्रसा पुद्गल पर्याय (अचित) जाणवा; जेम आरसीमां मुख जोतां आपणा शरीर समान सर्व प्रतिबिंबित पुद्गल दीसे छे, ते कांइ आपणा शरीरना पर्याय, आरसीमां जतां नयी, पण ते आरसीनुं निमित्त पामीने त्यां शरीर मुखादि जेवा विस्त्रसा पुद्गल, तत्काल श्रेणिबद्ध तद्रूप परि
मिने जमाव थाय छे, पण ते जीवना पर्याय न जाणवा; एवीज रीते शरीरनी छाया विगेरे विस्त्रसा पुद्रलजमाव जाणवो, तेम दीवा प्रमुखना प्रकाशादिमां पण जाणवुं.
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* श्रीमद् देवचन्द्रजीए दीवाना प्रकाशने विस्वसा पुद्गल मानी अचित को छे. आ बातमां ये मत छे. केटलाक मुनियो श्रीमद देवचन्द्रजीनी पेठे दीपकना प्रकाशने विस्वसा पुल मानी अचित गणे छे
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