________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विचार रत्नसार.
८२७
ते शीत, उष्ण, स्निग्ध, अने लखो, अने औदारिकादिशरीरमां आटे स्पर्श छे तो बीजा चार स्पर्श हलको, भारी, संवाळो अने खरबचडो एक्यांयी आव्या ? तेनो उत्तर जे संबंध बे प्रकारना छे:१ समवाय संबंध अने संयोगसंबंध, त्यां समवाय संबंध ते सहचारी वस्तु गुणपर्यायादि जेम षट् द्रव्यमां छे तेम जाणवो; अने संयोगसंबंध ते all fea भिन्न पुलो मळे थके प्रयोगे अपर नवीन गुण के भाव प्रगटे ते, जेम खारानी साथे हळदरनो संयोग थये रताशगुण नीपजे तेम जाणवुं; एवीज रीते आत्मा अने पुद्गलने संयोगे शब्दनामा गुण प्रगट्यो तेम वर्णादिगुणवंत कर्म परमाणुमां चार स्पर्श समवायसंबंधे पुद्गलाश्रित हताज, अने पछी जीवशरीरादि संयोगसंबंधे आठ नीपज्या.
१४० प्र० - जीव परभव आयु केवा परिणामे बांधे ?
उ०- योग, कषाय, ध्यान अने लेश्या ए चारना शुभा - शुभ यथायोग्य एकत्र संयोगे, जीवने परभवायु बंधाय छे.
१४१ प्र० - षद्रव्यना क्षेत्रकालभावादि त्रीस भेद कया, तथा प्रकारांतरे पण द्रव्यादिक चार भेदनुं स्वरूप कहो.
उ०- षद्रव्य मांहेला प्रत्येकना पांच पांच गुण छे ते आ प्रमाणे
१. धर्मास्तिकाय:- १ द्रव्यथी एक, २ क्षेत्रथी लोकम
७५
For Private And Personal Use Only