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आगमसार.
प्रदेश छे तेवारे व्यवहारनय बोल्यो के जे द्रव्य मुख्य देखाय छे तेहनो प्रदेश छे तेबारे ऋजुसूत्रनय बोल्यो के जे द्रव्यनो उपयोग देइ पुछिये ते द्रव्यनो प्रदेश छे. जो धर्मास्तिकायनो उपयोग देइ पुछियें तो धर्मास्तिकायनो प्रदेश छे. जो अधर्मास्तिकायनो उपयोग देइ पुछिये तो अधर्मास्तिकायनो प्रदेश छे. तेवारे शब्दनय बोल्यो के जे द्रव्यनो नाम लइ पुछिये ते द्रव्यनो प्रदेश छे. हवे समभिरूढनय बोल्यो जे एक आकाश प्रदेश मध्ये धर्मास्तिकायनो एक प्रदेश छे, अधर्मास्तिकायनो एक प्रदेश के अने जीवना अनंता प्रदेश छे. पुद्गलना पण अनंता प्रदेश छे, तेवारे एवंभूतनय बोल्यो के प्रदेशनी जे द्रव्यनी क्रियागुण पर्याय अंगीकार करी देखी ये ते समय ते प्रदेश ते द्रव्यनो गणिये ए प्रदेशमा सात नय कह्या.
हवे जीवमां सात नय कहे छे प्रथम नैगमनयने मते जे गुण पर्यायवंत शरीर सहित ते जीव एटले शरीरमां जे बीजा पुद्गल तथा धर्मास्तिकायादिक द्रव्य छे ते सर्व जीवमांज गण्या तेवारे संग्रहनय बोल्यो जे असंख्यात प्रदेशी ते जीव एटले एक आकाशना प्रदेश टल्या बीजा सर्व द्रव्य एमां गणाणा तेवारे व्यवहारनय बोल्यो जे विषय लइ काम वात संभारे ते जीव इहां धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय,आकाश तथा बीजापुद्गल सर्व टल्या पण पांचे इन्द्रीय तथा मन अने लेश्या ए पुद्गल छे ते जीवमां गणाणा, कारणके विषयादिकतो इंद्रियो ले छे ते जीवथी न्यारा छे पण इहां व्यवहारनयमते जीव भेला लीधा छे तेवारे ऋजुसूत्रनय बोल्यों जे उपयोगवंत ते जीव इहां इंद्रियादिक सर्व टल्या पण अज्ञान तथा ज्ञानना भेद टख्या नही. हवे शब्दनय बोल्यो जे नामजीव, स्थापना जीव
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