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आगमसार.
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द्रव्य जीव भाव जीव इहां जीवमां गुण-निर्गुणनो भेद पड्यो नही, तेवारें समभिरूढनय बोल्यो जे ज्ञानादिगुणवंत ते जीव तेवारें मतिज्ञान श्रुतज्ञान इत्यादिक साधक अवस्थाना गुण ते सर्व जीव स्वरूपमां आव्या. हवे एवंभूतनयबोल्यो जे अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंत चारित्र, शुद्धसत्तावंत ते जीव. ए नये जे सिद्ध अवस्थामा गुण हता तेज ग्रद्या ए सात नये जीव द्रव्य को.
वे सातन धर्म कहे छे. नैगमनय बोल्यो जे सर्व धर्म छे केमके सर्व प्राणी धर्मने चाहे छे. ए नय अंशरूप धर्मने धर्म एवं नाम कहे. हवे संग्रहनय बोल्यो जे वडेरायें आदरयो ते धर्म, एणे अनाचार छोड्यो पण कुलाचारने धर्म को, व्यवहारनय बोल्यो जे सुखनुं कारण ते धर्म एणे पुण्य करणीने धर्म करी मान्यो. ऋजुसूत्रनयमते जे उपयोग सहित वैराग्यरूप परिणाम ते धर्म कहियें. ए नयमां यथाप्रवृत्तिकरणना परिणाम प्रमुख सर्व धर्ममां गण्या ते मिथ्यात्वीने पण होय. हवे शब्दनय बोल्यो जे धर्मनुं मूल समकित छे माटे समकित तेज धर्म तेवारें समभिरूढनय बोल्यो जे जीव अजीव नवतत्त्व तथा छ द्रव्यने ओलखीने जीवसत्ता व्यावे, अजीवनो त्याग करे एहवो ज्ञान दर्शन चारित्रनो शुद्ध निश्चय परिणाम ते धर्म. ए नये साधक सिऊना परिणाम ते धर्मपणे लीधा. एवंभूतनय बोल्यो जे शुक्ल ध्यान रूपातीतना परिणाम क्षपक श्रेणि कर्म क्षयना कारण ते धर्म जे जीवनो मूल स्वभाव ते वस्तु धर्म जे मोक्षरूप कार्यने करे ते धर्म. ए साते नयें धर्म को.
हवे सातनये सिद्धपणो कहे छे. नैगमनयनी मते सर्व
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