________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आगमसार.
१३
तथा विणशवो ते सादि सांत छे. तथा स्वभाव गुण पर्याय ते अनादि अनंत छे अने भेदान्तरे अगुरुलघु ते सादि सांत छे.
धर्मास्तिकायमा स्वद्रव्य जे चलण सहाय गुण ते अनादि अनंत छे अने स्वक्षेत्र असंख्यात प्रदेश लोक प्रमाण छे ते अवगाहनापणे सादि सांत छे. स्वकाल ते अगुरुलघु गुणे करी अनादि अनंत छे अने उत्पाद व्यय ते सादि सांत छे. स्वभाव ते चार गुण अगुरुलघु अनादि अनंत छे १ खंध २ देश ३ प्रदेश ते अवगाहनाने प्रमाणे सादि सांत छे एम अधर्मास्तिकायना पण द्रव्यादि चार भांगा जाणवा तथा आकाशास्तिकायमां स्वद्रव्य अवगाहनादान गुण ते अनादि अनंत छे अने स्वक्षेत्र लोकालोक प्रमाण अनंत प्रदेश ते अनादि अनंत छे. स्वकाल ते अगुरुलघुगुण सर्वथापणे अनादि अनंतछे अने उपजवे तथा विणसवे सादि सांत छे. स्वभाव ते चार गुण तथा खंध अने अगुरुलघु ते अनादि अनंत छे तथा देश प्रदेश ते सादि सांत छे ते आकाश द्रव्यना बे भेद छे एक चौदराज लोकनो खंध लोकाकाश ते सादि सांत छे बीजो अलोकाकाशनो खंध ते सादि अनंत छे. *
काल द्रव्यमा स्वद्रव्य जे नव पुराणवर्त्तना गुण ते अनादि अनंतछे स्वक्षेत्र समय काल ते आदि सांत छे केमके वर्तमान
* उदराज लोकनो खंध लोकाकाश सादि सांत छे ते आवी तें जे लोकना मध्यभागे आठ रुचक प्रदेशथी मांडीने सादि छे जिहां उदराज लोकनो अंत आवे तिहां सांत तथा चउदराज लोकनो छेलो प्रदेश मूकीने पछे अलोकनी आदि लेवी पण अलोकनो अंत नथी माटे सादि अनंत कां छे.
For Private And Personal Use Only