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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
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परिणमे ते रीतेज केवल ज्ञान जाणे ते जे समये घटज्ञान हतुं ते समयांतरे घट ध्वंस थये कपालतुं ज्ञान थाय तेवारें घटप्रति भासनो ध्वंस कपाल प्रति भासनो उत्पाद अने ज्ञाननो ब्रुवपणो एम दर्शनादि सर्व गुणनो प्रवर्तन जाणवो.
तथा धर्मास्तिकायने विषे जे समये संख्यात परमाणुनो चलन सहकारिपणो हतो, फरी समयांतरे असंख्यात परमाणुने चलनसहकारीपणो करे तेवार संख्याता परमाणु चलनसहकारतानोव्यय अने असंख्येय परमाणुने चलनसहकारतानो उत्पाद अने चलनसहकारीपणे ध्रुव छे. एमज अधर्मास्तिकायादिकने विषे पण सर्व गुणनी प्रवृत्ति थाय छे. ए रीते द्रव्यनेविषे अनंता गुणनी प्रवृत्ति छे. इहां कोइ पुछशे जे धर्मास्तिकाय मध्ये अनंता जीव तथा अनंता परमाणु ते चलणसहकारी थाय एटलो चलनसहकारी छे, तो थोडा जीव अने थोडा परमाणुर्ने चलणसहकार करतां बीजो गुण कयो अणप्रवो रह्यो ? एम कहे तेने उत्तर के निरावरण जे द्रव्य छे तेनो गुण अप्रक्यों रहेज नही अने जीव पुद्गल जे आवी पहोता तेने सहकारें सर्व चलन सहकारी गुणना पर्याय ते प्रवर्ते ज छे. केमके अलोकाकाशमध्ये जो अवगाहक जीव पुद्गल नथी तोपण अवगाहक दान गुणतो प्रवर्ते ज छे. तेम धर्मास्तिकायादिकमां जीव पुद्गल थोडाने पोचवे, पण गुण तो बधो प्रवर्ते ज छे, एम धारखो. ए रीतें गुण पर्यायनो उत्पाद व्यय ब्रुवरूप धर्म कहेवो. ए चोथु रूप कडं.
तथा सर्वे पदार्थाः अस्तिनास्तित्वेन परिणामिनः तत्रास्ति भावानां स्वधर्माणां परिणामिकत्वेन उत्पाद
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