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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
__ अर्थ ॥ हवे बीजो भांगो कहे छे जे एक जीवनुं स्वरूप उपयोगमा आण्या छे ते जीवने विषे, अन्य जे सिद्ध संसारी जीव छे ते सर्वना गुपर्याय अस्तित्वादि प्रमुख सर्व धर्मनी नास्ति छे, अने अजीव द्रव्य तथा तेना जडतादिक सर्व धर्मनी नास्ति छे. जेम अग्निमां दाहकपणो छे तेनी पासे बीजो अग्निनो कणियो पड्यो छे, ते पण दाहक छ पण ते दाहकपणो भिन्न छे एटले ते कणीयांनो दाहकपणो ते अग्निमां नथी अने ते अग्निनो दाहकपणो ते कणीयांमां नथी. तेमज एक जीवमां ज्ञानादिक गुण छे ते बीजामां नथी अने बीजा जीवमां जे ज्ञानादिक गुण छे ते तेमां नथी. बाकी सरिखा छे. ते माटे जाणवादिक कार्य सरिखा करे तो पण सर्वमां पोतपोताना गुण छ पण कोइ द्रव्यना गुण कोइ द्रव्यमां आवता नथी. ते माटे स्वजाति अन्य द्रव्यपणो, अन्य गुणपणो तथा अन्य धर्मपणो ते सर्वनी नास्ति छे, एमज गुणमां पण सर्व अन्य द्रव्यादिकनी नास्ति छे, तथा पर्यायना अविभागमां पण स्वजाति अविभागकार्यता कारणतानी नास्ति छे. ते माटे परद्रव्यपणो, परक्षेत्रपणो, परकालपणो, परभावपणो, एनी नास्ति छे. एवो नास्तिपणो पण तेमांज रह्यो छे ते माटे स्यात् नास्तिपणो ए भांगो पण तेमांज छे. एम एकज मात्रनास्तिपणोको थके अस्तिपणो तथा एक कालपणो पण छे तथा जीवमां जडता गुणनी नास्ति छे, एटले जडतानी नास्ति ते जीवमांज रही छे. इत्यादिक अनंता धर्मनी सापेक्षता माटे स्यात्पदें बोलतां सर्व धर्मनो भास न थयो एटले सत्यता थाय ते माटे स्यात्नास्ति ए बीजो भांगो कह्यो.
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