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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
दने छेडे कयो छे. जो आवरवा योग्य वस्तु भिन्न छे तो आवरण जूदा छे. तिहां क्षयोपशमने मेदें जाणे छे ते परोक्ष अथवा देशथी जाणे छे, सर्वथा आवरण गयेथके प्रत्यक्ष जाणे पण केवलज्ञान सर्वभावनो संपूर्ण प्रत्यक्षदायक ते संपूर्ण प्रगट्यो तेवारें बीजा ज्ञाननी प्रवृत्ति छ पण 'मिन्न पडति नथी, माटे ते केवलज्ञाननो जाणपणोज कहेवाय छे, तथा कोइक ज्ञानगुणना अविभाग सर्व एक जातिना कहे छे, ते अविभागमध्ये वर्णादिक जाणवानी शक्ति अनेक प्रकारनी छे, तेमांज आवरण एटले जे शक्ति प्रगटे ते शक्तिनुं मतिज्ञानादि भिन्न नाम छे, अने सर्व आवरण गयाथी एक केवलज्ञान रह्यं छे. छद्मस्थ ज्ञाननो भास छे. ए पण व्याख्यान छे. एवो ज्ञानगुण पोताना स्वपर्याय ज्ञायक परिच्छेदक वेतृत्त्वादिकें अस्ति छे. एम सर्व गुणमां स्वधर्मनी अस्तिता कहेवी. तेमज जे अविभागरूप पर्याय छे जेना समूहनी एक प्रवृत्तिने गुण कहि येछैये तेपण स्वकार्य कारणधर्मे अस्ति छे. एम छ द्रव्यनुं स्वरूप स्वस्वरूपं अस्ति छे अने अन्य छे भांगा पण छे एवो सापेक्षता माटे स्यात्पद देइने बोलवो ते स्यात् अस्ति ए प्रथम भांगापणो (कथ्यो) एटले गवेष्यो. जे अस्तिधर्म ते पण नास्तिपणा सहित छे एटले अस्ति कहेतां थर्का नास्ति प्रमुख छ भांगानी छति छे, तिहां शब्द सहित उपयोग थयो तेथी सत्यपणो थयो.
तथा स्वजात्यन्यद्रव्याणां तडर्माणां च विजातिपरद्रव्याणां तद्धर्माणां च जीवे सर्वथैव अभावात् नास्तित्वं तेन स्यात् नास्तिरूपो द्वितीयो भङ्गः अत्र परधर्माणां नास्तित्वं नास्तिपदेन गृहीतं शेषा अस्तित्वादयः स्यात्पदे गृहीता इति
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