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(२१८) उपशमनो अन्तर्मुहूर्त काल छे सास्वादननो उत्कृष्ट छ आवलिका मात्र,समय मात्र वेदक क्षायिकनो तेत्रीस सागरोपम अने क्षयोपशमनो सासठ सागरोपमनो काल जाणवो. सर्वार्थसिद्धादिनी अपेक्षाए क्षायिक सम्यक्त्वनी तेत्रीस सागरोपमनी स्थिति जाणवी. बावीस सागरोपम स्थितिवाळा देवपणे त्रण वार उत्पन्न थवाथी क्षयोपशम सम्यक्त्वनो छासठ सागरोपमनो काळ सिद्ध थाय छे अने तेमां नरभवतुं आयुष्य अधिक जाणवू.
उकोसं सासायण-उवसमिया हुंति पंचवाराओ, वेयग खयगा इकसि-असंखवारा खओवसमो ॥
आखा भवचक्रमां जीवने सास्वादन
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