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(२०८) ज्ञानदर्शन चारित्र परिणति होय छे. आचारांगसूत्रमा अप्रमत्त साधुओने निश्चयसम्यक्त्व कथ्युं छे. तत्पाठ:. जं सम्मति पासह, तं मोणंति पासह, जं मोणंति पासह, तं सम्मंतिपासह ॥१॥ण इमं सक्कं सिढिलेहिं अदिजमाणेहिं गुणासाएहिं वंकसमायारेहिं पमत्तेहिं गारमावसंतेहिं मुंणी मोणं समादाय, धुणे कम्मसरीरगं, पंतलूहं च सेवंति धीरा सम्मत्त दंसिणोत्ति ॥१॥
जे सम्यक्त्व छे ते चारित्र छ, अने जे चारित्र छे ते सम्यक्त्व छे. आ सू
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