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(२०७) निश्चयसम्यक्त्व कहे छे तथा एने भावचारित्र कहे छे. भावचारित्रने निश्चयसम्यक्त्व केवी रीते कहेवाय ? तेना उत्तरमा जणाववामां आवे छे के भावचारित्रस्यैव निश्चयसम्यक्त्वरूपत्वात् भावचारित्रने निश्चयसम्यक्त्वरूपत्व छे.. अतएव मिथ्याचारनिवृत्तिरूप कार्यनो तेथी सद्भाव छे. जो आ प्रमाणे निश्चयसम्यक्त्वनुं स्वरूप कहेतां श्रेणिक कृष्ण वगेरेने निश्चयसम्यक्त्व घटी शके नहि ? उत्तरमां कहेवानुं के श्रेणिककृष्णादिकने निश्चयसम्यक्त्व नथी. अप्रमत्तसंयतानामेव तव्यवस्थितेः सातमा गुणस्थानकवर्ति अप्रमत्त साधुओने निश्चयसम्यक्त्व होय छे. कारण के सातमा गुणस्थानकवर्ति अप्रमत साधुओने शुद्धात्म
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