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(१९४) मोहनीयना चरम पुद्गल वेदनरूप एक सामयिक वेदक सम्यक्त्व जाणवू.
क्षायिकसम्यक्त्व-अनंतानुबंधीनी चोकडी-मिथ्यात्वमोहनीय, मिश्रमोहनीय अने समकितमोहनीय ए सात प्रकृतिनो बंधउदय, उदीरणा अने सत्तानो सर्वथा जेमां क्षय थाय छे तेने क्षायिक सम्यक्त्व कहे छे. पञ्चसम्यक्त्वानां कालनियममाह
ननु सप्तकक्षये क्षायिकमित्युक्तत्वात् सति क्षायिके श्रीकृष्णवासुदेवः कथं तृतीयनरकावनी जगाम श्रेणिकश्च प्रथमामिति । उच्यते-क्षायिकं द्वेधा शुद्धमशुद्धं
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