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(१९३) न क्षय करी सातमा गुणस्थानकमां समकितमोहनीनो छेल्लो ग्रास (भाग) भोगवे छे, उपजे छ तेने वेदकसम्यक्त्व कहे छे.
क्षपकश्रेणिं प्रपन्नस्य चतुरनन्तानुबन्धिषु मिथ्यात्वमिश्रपुञ्जद्वये च क्षपितेषु सत्सु क्षप्यमाणे सम्यक्त्वपुळे तत्सम्यक्त्वचरमक्षपणोद्यतस्य तच्चरमपुद्गलवेदन रूपम् ॥
क्षपकश्रेणि अंगीकार करेलाने अनन्ता. नुबंधी चार कषाय मिथ्यात्व अने मिश्र ए छ प्रकृति क्षय करे छते अने सम्यक्त्व मोहनीय पुंज क्षप्यमाण करे छते सम्यक्त्व
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