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बुद्धि सं. ४ पादरा.
ता. २०-८-२८
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निवेदन.
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सद्गत गुरुवर्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराजना अप्रगट साहित्य पैकीनो आ ग्रन्थ - प्रेमगीता (मूळ संस्कृत ) छे. आ ग्रन्थनो विषय गहन होवाथी तेनुं भाषान्तर अथवा अनुवाद थवानी जरूर छे. पण तेम करतां वधारे वखत लागे तेम होवाथी गुरुश्रीना पट्टधर शिष्य प्रसिद्धवक्ता श्रीमद्- अजितसागरसूरीश्वरजीनी प्रेरणानुसार हाल मूल रूपेज प्रसिद्ध करवानुं उचित धार्युं छे. आ ग्रन्थनुं गुजराती भाषामां, समश्लोक भाषान्तर सारा विद्वान् पासे करावी प्रसिद्ध करवा मण्डलने उमेद छे. या ग्रन्थनो विषय अति गम्भीर होवाथी कर्ताना आशय तथा सापेक्षता लक्षमां राखी वांचवा विनंती छे. आ ग्रन्थ साथे जोडवा सद्गत गुरुश्रीनुं संस्कृत टुंक जीवन तथा ग्रन्थनी प्रस्तावना लेखी आपना माटे श्रीमान् श्रजितसागरसूरीश्वरजी महाराजनो अंतःकरणपूर्वक आभार मानवामां आवे छे.
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सं १९८४ द्वितीयश्रावणसुदि ९ सोमवार
श्रीअध्यात्मज्ञानप्रसारक मंडल .
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