________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२०३) देहादिक मोहसागर उपर, ज्ञाने तरंतां रीझीए. प्रभु० ॥३॥ काउसग्ग योगे क्षणमां केवल, मुक्ति अनंता पामिया; शुभ अशुन परिणाम त्यजीने, शुद्ध स्वरूपे जामिया: प्रभ०॥४॥ शुद्धातम उपयोगे रहेता, सर्व प्रभुने ध्याश्या; निश्चयनयथा एकातममां, सर्व जिनेश्वर आविया. प्रभु ॥५॥ व्यवहारथी विधि काउसग्ग करवो, एम सापेक्ष विचारीये; बातम शुद्धि हेते साधन, हकदाग्रह वारिये. प्रभु०॥६॥द्रव्यभाव व्यवहारने निश्चय, नयसापेक्षे जाणीए; सांज सवारे यावश्यकने, रहेणीमांही आणीए. प्रनु०॥७॥ मोहादिक कमों झट विण से, मानव जव नहि हारिए; प्रभुनी साथे तन्मय थेने, मोही मनडुं मारीए. प्रभु ॥ ८॥ गृही त्यागीने आवश्यक छ, नित्यनी करणी कोजीए; बुद्धिसागर मंगलमाला, परमानंद पद लीजीए. प्रनु० ॥९॥ ॐ० प० कायोत्सर्गाराधनार्थ जा य० स्वाहा ॥
For Private And Personal Use Only