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( २०२ ) पंचमी कायोत्सर्गावश्यक पूजा.
देह छतां जेने जरा, रहे न देहाध्यास; कायो
तम ध्यानाभ्यास. ॥ १ ॥ द्रव्य
रसर्गज जाणवो, भावथी जावं, कायोत्सर्ग स्वरूप; आवश्यक विधि योगथी, नासे भवभय धूप ॥ २ ॥ शुद्धातम उपयोग बे, कायोत्सर्ग प्रमाण; निश्चयनयथी आदरे, प्रगटे केवलज्ञान ॥ ३ ॥ व्यवहारे विधिथी करो, टाळो मनना दोष दर्शन ज्ञानने चरणनी, शुद्धि प्रगटे पोष ॥ ४ ॥
हम मगन जये प्रभु ज्ञानमां. ए राग.
प्रभु महावीर जिनवर ध्याइए, ध्याइए ध्याइए ध्याइए, प्र० । कायोत्सर्ग करो गुण हेते, आवइकदिल धारिये; देहादिक जम वस्तुथी न्यारो, यातम शुद्ध विचारिये. प्रभु० ॥ १ ॥ देह छतां नहि देहनी ममता, धर्मे तनु व्यापारीए; शुद्धातम उपयोगे रहने, परमानंदमां म्हालीए. प्रभु० ॥ २ ॥ दर्शन ज्ञान चरणनी शुद्धि, काउसग्गयोगे कीजीए;
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