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(२०४) छठी प्रत्याख्यानावश्यक पूजा. छट्टे यावश्यक करो, नावे प्रत्याख्यान; द्रव्यनाव बे कर्मनो, नाश थतो भवी जाण. ॥१॥ सर्व शुभाशुन्न वांछना, त्याग ज प्रत्याख्यान; निश्चयथी ए आदरे, प्रगटे केवलज्ञान. ॥२॥ आसक्तिनो त्याग ते, निश्चय प्रत्याख्यान; रागद्वेषने परिहरे, प्रत्याख्यान प्रमाण.॥३॥द्रव्यथी प्रत्याख्यानना अनेक भेदो जोय; साध्यतणा उपयोगथी, साधन सफळां होय. ॥ ४ ॥ आतम ताबे मन थतां, वर्ते प्रत्याख्यान; ग्रहणत्याग बुद्धि विना, सहजयोगथी मान. ॥ ५॥
श्रीपालना रासनी देशनो. जिमतरु फूले नमरो बेसे. ए राग. प्रभु महावीरने वंदो पूजो, गावो प्रणमोध्यावो, प्रत्यास्थान जिणे उपदेश्यु, भावथी मनमां लावोरे, नविका, प्रत्याख्यानने धारो, थाय सफळ अवता
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