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( १२४ )
धन शक्तिनो देवो भोगजो; परमार्थों करवामां स्वार्थी होमवा, एवो साचो दुष्कर तपनो योगजो. द्रव्य० ॥ ६ ॥ फलनी इच्छा राख्या वण परमार्थनां, करवां कृत्यो त्यागी भयने द्वेषजो; खेद विना शुभ धर्म प्रवृत्ति धारीए, साध्योपयोगे मुक्तिनो उद्देशजो द्रव्य० ॥ ७ ॥ नामरूपमां निर्मोही बनी वर्ततुं, सर्व शुभाशुभ इच्छानो कर रोधजो; अर्पाइ जावुं गुरु यदि भक्तिमां, योग्यजनोने देवो घटतो बोधजो द्रव्य० ॥ ८ ॥ प्रायश्चित्तने विनये, वैयावृत्यथी, स्वाध्याय ध्यानथी प्रकटे आतम शुद्धिजो; देहादिकमां निर्मोही थै वर्ततां प्रगटे आतमनी नव क्षायिक लब्धिजो द्रव्य० ॥ ९ ॥ मनवाणीने कायाथी तप योग छे, तपथी शुद्ध करो आचार विचारजो; बुद्धिसागर प्रभु महावीर देवनो, जाख्यो तप एवो छे जग सुखकारजो. द्रव्य० ॥ १० ॥
ॐ तपो लाजाय ज० य० स्वाहा || चोथी भाव पूजा. भावथकी क्षणवारमा, प्रगटे केवलज्ञान;
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